Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
१३६
जैनवालबोधक
चित पदार्थ, पुष्प, इतर चंदनादिका धारण करना व घरमें दोनों वक्त धूप दहन करते रहना चाहिये। इसी प्रकार सुमिष्ट शब्दों को सुनना चाहिये और जिद्दा तृप्तिके लिये उपादेय स्वादिष्ट तृप्तिकर पथ्थ भोजन ग्रहण करना चाहिये जिससे सुख स्वस्थ्य की दृद्धि हो ।
-::
३८. वारिषेण राजपुत्रकी कथा ।
-:०:
मगध देशमें राजगृह नामका नगर है वहांके राजा श्रेणिक थे जिनकी पट्टरानीका नाम चेलना था उनके एक धार्मिक चारिषेण नामका पुत्र था जो हमेशा अष्टमी चतुर्दशी के व्रतों को वडे उत्साहसे पालन किया करता था एक चतुर्दशी के दिन उपवास धारण करके रात्रिको स्मशानमें जाकर कार्यासर्ग प्रांड दिया और सामायिक करने लगे इतनेमें उसी दिन श्री कीर्ति सेठ एक दिव्यहारको पहिनकर बगीचामें दिल वहलाने गए थे भाग्यसे वहीं पर एक मगधसुंदरी वेश्या भी जा पहुंची जिसका जी उस सुंदर हारको देखकर ललचा गया वस ! वह वहांसे चल दी और यह विचार करती हुई कि विना इस हारके मेरा जीना निर्थक है नाकर शय्या ( खाट ) पर लेट गई। रात्रिको उसका यार विद्युत् चोर माया और उसे इस प्रकार पडी देखकर बोला-माज