Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भाग ।
मांस खाय चकराय, पाय विपदा वहुरोयो || विन जाने मदपान योग, जादौंजन दंडके । चारुदत्त दुख सह्यो, विसंवा विसन अरुज्झे ॥ नृप ब्रह्मदत्त आंखेटस, द्विज शिवभूति अत्तरति ॥ पर रपनि राचि रावन गयो, सातौं सेवत कौन गति ॥ १४ ॥ दोहा !
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पाप नाम नरपति करें, नरक नगर में राज ।
तिन पठये पायँक विसन, निजपुर वसैती काज ॥ १५ ॥ जिनके जिनके बचनकी, वसी हिये परतीत । विसन प्रीति ते नर तजो, नरकवास भयभीत ॥ १३ ॥
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३६. जिनेंद्रभक्तकी कथा ।
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सौराष्ट्र देश में पटना नगर है वहां यशध्वज राजा राज करते थे। उनकी रानीका नाम सुसीमा या और सांत व्यमनका सेवी चोरोंका मुखिया सुवीर नामका पुत्र था. पूर्वदेश में तामलिता नगरी थी जहां एक श्रद्धालु सेठ रहता था जिसके सतखने मकानके ऊपरखनमें एक अपूर्व रत्नमयी पार्श्वनायजी की प्रतिमा विराजमान थी उसके ऊपर तीन छत्र थे
७ वक नामका राजा' ८ जले ९ वेश्या व्यसन १० सिकार से ११ सिपाही १२ नरक- नगरको वसानेके लिये १३ जिनेंद्र भगवानके ।