Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भाग !
छो कर्म प्रवाद है, सत्मवाद पहिचान | अष्टपथास मवादपुनि, नत्रमो प्रत्यारूपान ॥ २५ ॥ विद्यानुवाद पूरव दशम, पूर्व कल्याण महन्त । प्राणवाद किरिया बहुल, लोक बिंदु है अन्त ॥ २६ ॥
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उत्पाद पूर्व १, अग्रायणी पूर्व २ वर्षानुवाद पूर्व ३, अस्ति नास्ति प्रवाद पूर्व ४, ज्ञान प्रवाद पूर्व ४, कर्म प्रवाद पूर्व ६, सन्यवाद पूर्व ७, थात्मप्रवाद पूर्व ८, प्रत्याख्यान पूर्व ६, विद्यानुवाद पूर्व ११, कल्याणानुवाद १२, प्राणावाद पूर्व १३, लोकविंदु पूर्व १४ ये चौदह पूर्व हैं ||
सर्व साधुओंके २८ मूल गुण ।
साधु उन्हें कहते हैं जिनमें नीचे लिखे हुये २८ मूलगुण हों वे सूनि तपस्वी कहलाते हैं । उनके पास कुछ भी परिग्रह नहीं होता और न वे प्रारंभ करते हैं। वे सदा ज्ञान ध्यान तपमें लवलीन रहते हैं ।
पांच महाव्रत |
हिंसा वृत तसकरी, अब्रह्म परिग्रह पाय । मन वच तन त्यागवो, पंच महाव्रत थाय ॥ २७ ॥ वैं
after etad १ सत्य पात्रत २ अचौर्य महान ३ ब्रह्मचर्य मात्र ४ परिग्रह त्याग महाव्रत ५ ॥