Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भाग। होवै चौरी न जारी सुसमय वरते, हो न दुष्काल भारी । सारे ही देश घारें जिनवर वृषको, जो सदा सौख्यकारी॥७॥
— दोहा। घाति कर्म जिन नाशंकरि, पायो केवलराज। शांति करें ते जगतमें, वृषभादिक महाराज ॥ ८॥
. मंदाक्रांता। शास्त्रोंका हो पठन सुखदा, लाभ सत्संगतीका ।
सवृत्तोंका सुजस कहके, दोष ढाकू-सभीका ॥ बोलू प्यारे वचनं हितके, आपका रूप ध्याऊं।। तौलों सेऊ चरन जिनके, मोक्ष जोलौं न पाऊं।
आ। तब पद मेरे हियमें, मम हिय तेरे पुनीत चरणों में । तबलौं लीन रहो प्रभु, जन तक पाया. न मुक्तिपद मैंने १० अक्षर पद मात्रासे, दूषित जो कछु कहा गया मुझसे । क्षमा करो प्रभु सो सब, करुणा करि पुनि छुडाउ भवदुखसे हे जगबंधु जिनेश्वर, पांऊ तव चरण.शरण वलिहारी। मरणसमाधि सुदुर्लभ, कर्मोका क्षय सुवोध सुखकारी ।।
पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।। . .. — विसर्जन पाठ । दोहा। . विन.जाने वा जानके, रही टूट जो कोय। . तुव प्रसादतः परम गुरु, सो सब पूरन होय ॥१॥