Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
६२
जैनवालबोधक
काकर पिलावो तो आपको वडा पुराय होगा । शेठको चौर पर दया आ गई और वोला कि -- मेरे गुरुने एक विद्या साधनेको एक मन्त्र जपने दिया है सो मैं हर समय उसका जाप करता हूं । यदि तुम उस मंत्रको याद रक्खो और मुझे पानी लाये वाद मुझे सुनाकर याद करा देवो तौ मैं पानी ला दूं । तव चौरने उसे स्वीकार किया उसने पंचमस्कार मन्त्ररूपी महाविद्या चौरको बतला दी और पानी लानेको चल दिया। इधर दृढसूर्यको नमस्कार मन्त्रका उच्चारण करते करते शूली पर चढ़ा दिया सो मन्त्र के प्रभाव से मर कर वह सौधर्मस्वर्ग में जाकर देव हुवा |
चौके मर जाने पर चौकीदारोंने राजासे जाकर कहा कि हे देव ! धनदत्त शेठने चौरके पास जाकर कुछ धीरे २ सलाहकी थी । इस पर राजाने यह अनुमान करके कि शेठके साथ चौरकी जरूर साजिस होगी और शेठके घर में चौरीका गुप्त घन भी अवश्य होगा इसलिये शेठको पकढनेके लिये सिपाही भेजे । परन्तु शेटके दरवाजे पर बैठे हुये पहरेदारने उन्हे घरके भीतर जाने नहीं दिया और जब ये जवरदस्ती जाने लगे तो पहरेदारने लाठीसे उनकी खूब ही खबर ली। यहां तक कि वे वेहोश होगये । राजाने इस बातकी खबर पाकर क्रोधित होकर और भी बहुतसे नोकर भेजे परन्तु पहरेदारने उनको भी मार पीटकर वेहोश कर दिया - आखिर राजा बहुतसी फौज लेकर प्राया परन्तु