Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनबालबोधककरनेके लिये भाज्ञा प्रदान करें। मैंने इस एकही भवमें संसारकी विचित्रता देख ली। तब पिताकी भाशा पाय कमलश्रीकांतिका अर्जिकाके पास दीक्षाग्रहण करके अर्जिका हो बहुत काल तपस्या करके अंतमें विधिपूर्वक सन्यास मरण करके स्त्रीलिंग छेद कर बारहवें स्वर्गमें जाकर देव हुई ।
३१. आहार्य पदार्थ। हमारे देशमें जो आहार किया जाता है वह शरीर रक्षाकी इच्छासे नहीं किया जाता. भूख लगी है, तकलीफ होरही है इसको मिटाना जरूरी है, ऐसा समझ जो मिला सोडूंस कर पेट भर लिया करते हैं, शरीरको सतेज पबल और भले प्रकार पुष्ट रखनेकेलिये, तथा दीर्घायु होकर दैहिक सुख भोग करनेकेलियेही आहार करना चाहिये सो कोई नहिं समझते। जो कुछ मिला सो खालिया उमसे चाहे शरीर नष्ट हो, चाहे वृद्धि हो उस तरफका कुछ भी विचार न रख शीघ्रताके साय पेट भरके नित्यकी वेगार टाल देते हैं । नित्यका शाहार करना एक सुखका मूल कारण है सो कोई भी नहीं समझते।
यदि किसीके यहांसे निमंत्रण [ न्यौता] पाता है तो प्रसन्न हो जाते हैं. और नियंत्र" देनेवालेके घर जाकर जितना पेटमें अट सक्ता खाकर अपने स्वास्थ्यको नष्ट कर देते हैं। इसके सिवाय हम लोगोंका रसोई घर.पाया ऐसी पुरी बबस्वामें होता है कि उसके देखते ही घृणा पाती है। ऐसी