Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भाग।
१९३ . किसी प्रकार भी वेश्या न हुई तब उसने सिंहराजको दिखा दी उसने गत्रिमें जबरदस्ती उससे व्यभिचार करना चाहा परन्तु अनंतमतीके व्रतके माहाम्यसे नगरदेवताने उस राजा को खूब पार लगाई तत्र भयभीत होकर उसे घरसे निकाल दिया । तब रोती दुःख उठाती हुई कमल श्रीकांता अर्जिकाने श्राविका ममझकर बडे आदरसे अपने पास रक्खा ।
इसके पश्चात् अनंतमतीके शोक विस्मरणार्थ प्रियदत्त सेठ बहुतसे यात्रियों सहित तीर्थयात्रा करता २ अयोध्या में आया और अपने शाले जिनदत्त श्रेष्ठीके घर संध्या समय प्रवेश करके रात्रिमें अपनी पुत्रीके खो जानेकी वात कही । प्रातः काल ही वे तो सब बंदना भक्ति करने गये इधर जिनदत्त शेठकी स्त्रीने अनंतपतीको रंगसे चौक पूरने और रसोई करने के लिये अति चतुर समझ बुलाया सो अनंतपती सब कामकरके कमलश्रीकांताकी वस्तिकामें (धर्मशालामें) चली गई । जब कि बंदना भक्ति करके प्रियदत्त शेठ पाया तो उसने आंगन में चौकपूरना ( मांडना ) देखकर अनंतमतीको याद करके गदगद स्वरसे अश्रुपात करते हुये जिनदचसे कहा कि जिसने यह माडने (चित्र) खीचे हैं उसे मुझे दिखाओ। जिनदत्तने अनंतमतीको बुलाकर दिखाया प्रियंदच और उसकी स्त्रीने अपनी खोई हुई पुत्रीको पाकर बडा आनंद पाया जिनदत्तने भी इनके संयोग पर बडा पानंद उत्सव किया। अनन्तमतीने कहा-हे पिता ! अब मुझे तप