Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तुतीय माग पहरेदारका वाल भी बांका नहिं कर सका उसने सब सेना को क्षण भरमें मार पीट कर सुला दिया। यह देखकर राजा भयके मारे भागने लगा परन्तु उसने भागने नहिं । दिया और कहा कि हे राजा ! यदि तू शेठकी शरण ले तौ तुझे बचाता है नहीं तौ तेरी रक्षा नहीं है तब राजा घरमें गया और शेठके पास जाकरं बोला-शेठनी ! मुझे बचाओ बचाओ, राजाको इस हालतमें लाचार देखकर शेठको अचम्भा हुआ । उसने पहरेदारसे पूछा कि--तू कौन है ?
और महाराजकी यह दशा .तुने किस प्रकार की ? पहरेदारने नमस्कार करके कहा कि शेठजी ! मैं दृढसूर्य नामका चौर हूं। आपके मन्त्र प्रभावके कारण मैं सौधर्मस्वर्गमें देव हुवा हूं । इस समय आपकी रक्षाकेलिये मैंने यह सब कौतुक किया है। राजाकी सेनाके ये सव लोग पडे हैं सो मरे नहीं है मैंने बेहोश कर दिये हैं। ... __यह पहरेदार वही चौर था जिपको धनदचने सूलीपर चढते समय मन्त्र दिया था। उसीके प्रभावसे यह देव हुआ
और अवधिज्ञानसे अपनी पहिली हालत विचार कर अपने उपकारी शेठको विपत्तिमें फंसा हुवा जानकर और आप मायासे पहरेदार बनकर शेठकी रक्षा की।
देखो विद्यार्थियो ! मरते समय एक चौर विना विचारे ही नमस्कार मन्त्रका उच्चारण करनेसे देवपदको प्राप्त हुआ तो अन्य सदाचारी पुरुष शुद्ध मनसे इस मन्त्रका पाठ वा