Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनबालबोधकजाप करें तो क्यों न स्वर्गादिक सुखोंको प्राप्त होवें ? इस. लिये तुमको भी नमस्कार मंत्रको हर कामके पूर्व सातबार पढ लेना चाहिये और साम सवेरे मन्दिरजीमें समय मिले तो एक माला नमस्कारमन्त्रकी फेर लेना चाहिये।
. १७. शुद्ध वायु।
आहार और पानीके विना हम कई दिन तक जी सकते है परंतु वायुके विना क्षणमात्र भी जीना नहिं हो सकता क्योंकि हमलोग पैदा होते ही सबसे पहिले श्वास द्वारा वायु ग्रहण करते और फिर उसको निवास द्वारा (उच्छवास द्वारा) बाहर करदेते हैं सो जन्मसे मृत्युपर्यंत सोते वैठते उठते निरंतर श्वासोच्छवास लेते रहते हैं। श्वासोच्छ्वासको लिये विना कोई भी नहिं जी सकता इस कारण जीवनधारण करनेके लिये वायुकी सर्वापेक्षा अधिक आवश्यकता है क्योंकि वायु का स्वाभाविक गुण ही यह है कि मनुष्यकी देहका सदैव शुष्ट करना परंतु वायु अनेक कारणोंसे दूषित हो जानी है। जिस स्थानपर जल होता है वहांपर जलके संयोगसे सदैव अनेक प्रकारके द्रव्य गलते मरते रहते हैं और जिसस्थान • पर हवा भलेपकार नहिं चल सकती तथा जिस स्थानपर मैला वा दुर्गधित ( गले सडे ) पदार्थ पड़े रहते हैं उस स्थानकी वायु अवश्य दृषित ( मैली ) हो जाती है। ..