Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भांग |
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दत्त शेठका कहना सूंठ हो तो मैं व्यर्थ ही मारा जाऊंगा ऐसी शंका करके नीचे उतर आया परंतु फिर विचार हुवा कि जिनदत्त सेट बडे घर्मात्मा हैं, दयावान हैं वे मुझे झूठ बोलकर मारनेका उपदेश क्यों देने लगे, मेरे मारनेसे उनका क्या उपकार होगा । ऐसा समझकर फिर बटपर चढा और मंत्र पत्रकर रस्सी काटनेको उद्यत हुवा कि फिर शंका होगई इसी प्रकार वह शंकित होकर पेडपर तथा छींकेपर चढने उतरने
लगा ।
इवर एक अंजन चोर था वह अंजना सुंदरी वेश्याके यहां जाया करता था | वेश्याने एकदिन प्रजापाल राजाकी रानीके गले में रत्नजडित सुवर्ण हार देख पाया | जब अंजन चोर रात्रिमें वेश्याके घर आया तो वह बोली कि रानीके गलेका हार मुझे ला दो तो मैं तुमसे बोलूं नहीं तो नहीं । चौरने कहा कि यह कौनसी बडी बात है, उसीवक्त राजाके महकमें चला गया और सोती हुई रानीके गलेसे हार उताकर चल दिया परंतु पहरेदारोंको चौर तो नहीं दीखा केवल हारका प्रकाश वा चमक दिखने लगी सो यह कोई अंजन चौर है, रानीसाहवका हार चुराकर लेजाता दिखता है, समझ उसे पकड़कर खींचातानी करने लगे। चौरने हार छोडकर जान बचाकर भागना शुरू किया । राजाके पहरेदार भी उसका पीछा करने लगे । वह चौर भागता भागता सोमदचके पास पहुंचा और उसे वृक्षसे चढते उतरते देख पूंछने