Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनबालबोधक -
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पल्टना से कितने ही मुख्य वा रूढ पदार्थों की सृष्टि हुई है । रूढ पदार्थ कितने ही क्यों न हों परंतु अधिकांश विद्वानों ने ६५ रूढ पदार्थ पाने हैं | जैसे मम्छ, यवक्षार, अंगारक, स्वर्ण, रौप्य, लौह, ताम्र, जस्ता, रांगा, गंधक और पारा इत्यादिक । इन सब रूढ पदार्थोंको भूत तथा अयौगिक पदार्थ भी कहते हैं । क्योंकि इन पदार्थोंमें कोई दूसरा पदार्थ as for है और जो पदार्थ दो तीन चार रूढ पदार्थों के योगसे बने हैं उनको यौगिक पदार्थ कहते हैं । यौगिक पदार्य अनंत हैं। नदी, पहाड, वृक्ष, जल, वायु, पृथिवी, सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, नक्षत्र, पित्तल, कांसा, काच, लवण इत्यादि समस्त पदार्थ जो हमारी दृष्टिगोचर होते हैं, वे इन्ही ६५ पदार्थोके योगसे बने हैं |
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इन रूढ पदार्थोंके उस खंडको परमाणु कहते हैं जिस का कि फिर खंड नहि हो सके अर्थात् इन मूल पदार्थोंको तोडते २ इतने सूक्ष्म हो जावें कि फिर उसमेंसे एक एक टुकडे का दूसरा टुकडा करना चाहें तौ नीिं हो सके उसीको परमाणु कहते हैं परंतु वह परमाणु इतना सूक्ष्म है कि अब तक कोई भी विद्वान उसकी प्राकृति निश्चय नहिं कर सका है । इस समय अनेक अणुवीक्षण यंत्र तैयार हुये हैं, उनके द्वारा देखनेसे क्षुद्रसे क्षुद्र वस्तु भी बहुत बडी होकर दिखती है । उनं अणुवीक्षण यंत्रोंके द्वारा उसके हिस्से करके देखने पर उसके इतने टुकडे हो जाते हैं कि फिर वे देखने में