Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालवोधकये दो पदार्थ मुख्य हैं । तालाब या वावडीका जल, स्नान करके कपडे धोने, वर्तन माजने वगैरहसे दूषित नहिं करके यदि यथेष्ट परिमाणसे उसमें कोयले ओर वालु डाल दिया जाय तो उस तालाव और वावडीका जल सदैव निर्मल रह सकता है इसके सिवाय कूएमें भी बालू और कोयले ढाल दिये जाय तो उसका जल भी विशेष दूषित नहिं होता । परन्तु सबसे सीधा उपाय यह है कि चाहे कूपका जल हो चाहे नदी वालावका जल हो, उसे विना ग्रंथिके ( जिसमें 'कि सूर्यका प्रतिबिंब नहिं दीखे) दोहरे कपडेसे छान ले फिर उसमें लोंग इलायची जावत्री बादाम मेंसे किसी एक का चूर्ण एक बडे जलमें छह मासेके अंदाज डाल दे तो वह जल दोपहर तक निर्मल रहेगा। क्योंकि जलमें स्वास्थ्य विमाडनेवाले जो असंख्य जीव अणुवीक्षण यंत्रसे चलते फिरते नजर आते हैं उनमेंसे प्रायः सभी जीव उक्त प्रकार के छन्नसे छानने पर निकल जायगे और लवंग इलायची आदिका चूर्ण डालनेसे अन्यान्य समस्त दोष नष्ट हो जाने के सिवाय दो पहर तक उस जलमें कीट ( जीव ) उत्पन्न नहिं हो सकते। इसके सिवाय उक्त प्रकारके छन्नेसे छान कर अग्नि पर गर्म करके रख देनेसे भी जल बहत निमेल 'हो जाता है परंतु उसमें भी दोपहरके बाद फिर वह जल
नहिं रखना चाहिए अर्थात् दो पहरसे पहिलेही वह जल · पर्चा देना चाहिये या फेंक देना चाहिये। फिर या तौ उक्त