Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भाग।
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१३. भूधर जैन नीत्युपदेशसंग्रह प्रथम भाग.
जिनवाणी और मिथ्यावाणा में फेर ।
कवित्त मनहर। कैसे करि केतकी कनेर एक कही जाय, आक दूध गाय दूध अंतर घनेर है । पीरी होत रीरी न रीस करै कंचन की, कहां कागवानी कहां कोयलकी टेर है ॥ कहां भान भारो कहां ग्रागिया विचारो कहां, पूनौको उजारो कहां मावेस अधेर है। पच्छ छोरि पारखी निहार देख नीके करि, जैन चैन और वैन इतनौ ही फेर. है ॥१॥
वैराग्य भावना। कब गृह वाससौं उदास होय वन सेऊ, "ऊं निजरूप गति रोकू पने करोकी । रहि हौं अडोल एक आसन अचल अंग, सहिहौं परीसा शीतधाम मेघ झरीकी ॥ सारंगसपार्ज खाज कवधौं खुजै है आनि, ध्यान दलजोर जीतूं सेनामोह अरीकी ।
, "धाक दुध सुरहीको ऐसा भी पाठ है । २ पीतल । ३ हिर्सबराबरी , ४ सद्योत पटवीजना ! ५अमावस्याका अधेरा । ६ “ निहारो नेक नीके कर " ऐसा भी पाठ है । ७ अन्य धर्म वालोंके वचनोंमें । जानू-अनुभवू । ९ मनरूपी हाथोकी । १० हिरनोंके समूह | ११ खुजली।