Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालबोधकस्थीको भोजनसे पहिले कुछ न कुछ आखड़ी विना दिये 'जीमते ही नहीं थे सो शेठजीको भी उन्होंने कहा कि पहिले कोई प्रतिज्ञा ले लो तो हम जीमनेको बैठे नहिं गेहम कदापि जीमेंगे नहीं, यह हमारा नियम है। सो जो कुछ भी हो एक भाखडी ग्रहण करना चाहिये। सेठजी बडे चक्करमें पड गये, विना पाखडी लिये साधुको फिरा देते हैं तो शहरमें निंदा होनी है। लाचार सेठने कहा कि मुझे कितने ही स्यागी महात्मा पंडितोंने आखडी देनेका अाग्रह किया परंतु मैंने आजतक कोई आग्बडी वा प्रतिज्ञा ग्रहण नहीं की। ब्रह्मचारीजीने पूछा क्या भगगनके नित्य दर्शन करनेकी भी आखडी नहीं ली ? सेठने कहा कि- हमारे घर या दुकान से मंदिरजी बहुत दूर है दर्शन करके आनेमें आधा घंटा लग जाता है। दुकान पर काम बहुत है सो ऐसी पाखंडी मेरेसे कदापि नहीं पल सकती । तब ब्रह्मचारीजीने कहा कि तुमारी दुकानके सामने क्या है ? सेठने कहा कि एक कुमारका घर है वह सवेरेसे वरतन बनाया करता है। ब्रह्मचारीजीने कहा कि अच्छा उस कुमारको तो रोज देखते हो यही आखडी ले लो कि- कुमारका मुह देखे विना कभी अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा। तब शेठने कहा कि यह ग्राखडी तो मैं ले सकता हूं। परंतु इससे लाभ क्या होगा । ब्रह्मचारीजीने कहा-इससे भी बहुत कुछ लाभ होगा तुम प्रतिज्ञा तो ले लो इस प्रतिज्ञासे लाभ होगा तो फिर भगवान के नित्य