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१७ (नंदीसुत्र ४०) अर्थात् जिनोपदेश ही जैन आगम हैं । इसीलिए मुख्यतः जिनों का उपदेश-जैनागम प्रमाण माना जाता हैं ।२४ भगवान महावीर के उपदेश को उनके गणधरों ने सूत्रबद्ध किया था ।२५ इसलिए आगमों को गणिपिटक भी कहते हैं। आगम शब्दवाच्य एक ग्रंथ नहीं हैं पर अनेक ग्रंथो का समुदाय हैं ।
श्वेतांबर संप्रदाय के मतानुसार आगमों की संख्या ४५ हैं । वह निम्न प्रकार :
११ अंग + १२ उपांग + १० प्रकीर्णक + ६ छेदसूत्र + ४ मूलसूत्र + २ चूलिका= ४५ आगम
अनुयोग अनुयोग का स्वरूप :
जैन साहित्य में 'अनुयोग' के दो रूप मिलते हैं।६- (१) अनुयोगव्याख्या (२) अनुयोग-वर्गीकरण
किसी भी पद आदि की व्याख्या करने उसका हार्द समझने/समझाने के लिए (१) उपक्रम, (२) निक्षेप, (३) अनुगम और (४) नय इन चार शैलियों का आश्रय लिया जाता है । 'अनुयोजनमनुयोग' (अणुजोअणमणुओगों) सूत्र का अर्थ के साथ सम्बन्ध जोडकर उसकी उपयुक्त व्याख्या करना, इसका नाम हैअनुयोग व्याख्या (जम्बूदीव पण्णत्ति वृत्ति) ।
अनुयोग-वर्गीकरण का अर्थ है__ अभिधेय(विषय) की दृष्टि से शास्त्रों का वर्गीकरण करना । जैसे अमुक अमुक आगम, अमुक अध्ययन; अमुक गाथा, अमुक विषय की है। इस प्रकार विषय वस्तु की दृष्टि से वर्गीकरण करके आगमों का गम्भीर अर्थ समझने की शैली अनुयोग वर्गीकरण पद्धति हैं ।
प्राचीन आचार्यों ने आगमों को गंभीर अर्थ के सरलतापूर्वक समझाने के लिए आगमों का चार अनुयोगों में वर्गीकरण किया है
१. चरणकरणानुयोग २. धर्मकथानुयोग ३. गणितानुयोग
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