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और उपांगो का संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है, लेकिन विषय आदि की दृष्टि से इनमें कोई संबंध प्रतीत नहीं होता । १२ उपांग निम्न है :
(१) उववाइय; (२) रायपसेणइय; (३) जीवाजीवाभिगम; (४) पन्नवणा; (५) सूरियपन्नत्ति; (६) जम्बुद्वीवपन्नत्ति; (७) चन्दपन्नत्ति; (८) निरयावलिया; अथवा (कप्पिया) (९) पुफिया; (१०) कल्पवडंसिया; (११) पुप्फचूला; और (१२) वण्हिदसा ।
दस पइण्णग (दस प्रकीर्णक) नंदीसूत्र के टीकाकार मलयगिरि के अनुसार तीर्थंकर द्वारा उपदिष्ट श्रुत का अनुसरण करके श्रमण प्रकीर्णकों की रचना करते हैं, अथवा श्रुत का अनुसरण करके वचनकौशल से धर्मदेशना आदि के प्रसंगे से श्रमणों द्वारा कारित रचनायें प्रकीर्णक कही जाती हैं । महावीर के काल में प्रकीर्णकों की संख्या १४,००० बताई गई हैं । आजकल मुख्यतया निम्नलिखित दस प्रकीर्णक उपलब्ध हैं :- (१) चउसरण, (२) आउरपच्चक्खाण, (३) महापच्चक्खाण, (४) भत्तपरिण्णा (५) तन्दुलवेयालिय (६) संथारग; (७) गच्छायार; (८) गणिविज्जा; (९) देविदथय (१०) मरणसमाही ।१९
छेदसूत्र छेदसूत्र जैन आगमों का प्राचीनतम भाग होने से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इन सूत्रों में साधु और साध्वियों के प्रायश्चित्त की विधि का वर्णन है । ये सूत्र चारित्र की शुद्धता स्थिर रखने में कारणभूत है, इसलिये इन्हे उत्तमश्रुत कहा है (जम्हा एत्थ सपायच्छित्तो विधी भण्णति, जम्हा य तेण चरणविसुद्धी करेति, तम्हा तं उत्तमसुतं-निशीथ, १९ उद्देशक, ६१८४ भाष्यगाथा की चूर्णी, (पृ० २५३) । छेदसूत्रों में जैन भिक्षुओं के आचार-विचार संबंधी नियमों का विवेचन है, जिसे भगवान महावीर और उनके शिष्यों ने देश-काल की परिस्थतियों के अनुसार श्रमण सम्प्रदाय के लिये निर्धारित किया था । बौद्धों के विनयपिटक से इनकी तुलना की जा सकती है । छेदसूत्रों के गंभीर अध्ययन के बिना कोई आचार्य अपने संघाड़े (भिक्षु सम्प्रदाय) को लेकर ग्रामानुग्राम विहार नहीं कर सकता, गीतार्थ नहीं बन सकता तथा आचार्य और उपाध्याय जैसे उत्तरदायी पदों का अधिकारी नहीं हो सकता । निशीथ के भाष्यकर्ता ने छेदसूत्रों को प्रवचन का रहस्य प्रतिपादित कर गुह्य बताया है ।२० जैसे कच्चे घडे में रक्खा हुआ जल घड़े को
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