________________
भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। अथ प्रथमं हरीतक्या उत्पत्तिर्नाम लक्षणं गुणाश्च । दक्ष प्रजापति स्वस्थमश्विनौ वाक्यमूचतुः। कुतो हरीतकी जाता तस्यास्तु कति जातयः ॥ १॥ रसाः कति समाख्याताः कति चोपरसा स्मृताः। नामानि कति चोक्तानि किंवा तासां च लक्षणम्॥२॥ के च वर्णा गुणाः के च का च कुत्र प्रयुज्यते । केन द्रव्येण संयुक्ता कांश्च रोगान्व्यपोहति ॥३॥ प्रश्रमेतं यथा पृष्टं भगवन्वक्तुमईसि ।
अश्विनोर्वचनं श्रुत्वा दक्षो वचनमब्रवीत् ॥ ४ ॥ सर्वथा सुखपूर्वक बैठे हुए दक्ष प्रजापतिजीसे अश्विनीकुमार पूछने लगे कि हे भगवन् ! हरीतका ( हरड़ ) कहां से उत्पन्न हुई है और इसकी कितनी जातिये हैं ? इसमें कितने रस और उपरस हैं ? इसके कितने नाम हैं और उन्के क्या लक्षण हैं ? इसके वर्ण और गुण क्या क्या हैं ? किस प्रकारकी हरीतकीका किस स्थान में प्रयोग करना चाहिये ? हरीतकी किन २ द्रव्योंके संयोगसे किन २ रोगोंको दूर करती है ? इन प्रश्नोंका क्रमपूबैंक उत्तर देनेकी कृपा कीजिये । इस प्रकार अश्विनीकुमारोंके वचःको सुनकर दक्ष प्रजापति कहने लगे॥ १-४ ॥
हरीतक्या उत्पत्तिः। पपात बिंदुर्मेदिन्यां शकस्य पिबतोऽमृतम् । ततो दिव्याः समुत्पन्नाः सप्तजातिहरीतकी ॥५॥ आदिकाळमें जब इन्द्र अमृत पीने लगे तो पीते समय अमृतकी एक बूंद पृथ्वीपर गिर पड़ी उससे सात जातिकी दिव्य शक्तियोंवाली हरी. तकी उत्पन्न हुई ॥ ५॥
Aho ! Shrutgyanam