Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार होते देखे जा रहे हैं / अतः ऐसे परम औदारिक शरीर को भी हमारा नमस्कार हो। जिनेन्द्र देव तो आत्म द्रव्य ही हैं, परन्तु आत्म द्रव्य के निमित्त से शरीर की स्तुति उचित है तथा भव्य जीवों को तो मुख्य रूप से शरीर का ही उपकार है, अतः (शरीर की) स्तुति और नमस्कार करना उचित है तथा जिसप्रकार कुलाचलों (जम्बुद्वीप को सात क्षेत्रों में विभाजित करने वाले छह पर्वतों) के बीच सुमेरु शोभित होता है, उसीप्रकार गणधरों और इन्द्रों के बीच श्री भगवान (अरिहंत देव) शोभित हैं / ऐसे श्री अरिहंत देवाधिदेव इस ग्रन्थ को पूर्ण करें। सिद्ध देवों की स्तुति आगे श्री सिद्ध परमेष्ठि की स्तुति -महिमा का वर्णन करके अष्ट कर्मो को दूर करता हूँ। सिद्ध परमदेव का स्वरूप :- जिनने समस्त घातिया और अघातिया कर्ममल को धो दिया है। ऐसे निष्पन्न हुये हैं जैसे सोलह ताव का शुद्ध स्वर्ण अन्तिम ताव में तप कर निष्पन्न होता है, वैसे ही अपनी स्वच्छ शक्ति से निष्पन्न होकर दैदीप्यमान हो कर उनका स्वरूप प्रकट हुआ है वह मानों प्रकट रूप में ही समस्त ज्ञेयों को निगल गया है। सिद्ध और कैसे हैं ? एक-एक सिद्ध की अवगाहना में अनन्तअनन्त सिद्ध भिन्न-भिन्न अपनी सत्ता सहित विराजमान हैं। कोई एक सिद्ध भगवान किसी दूसरे सिद्ध से मिलते नहीं हैं। ___ सिद्ध और कैसे हैं ? परम पवित्र हैं , स्वयं शुद्ध हैं और आत्मिक स्वभाव में लीन हैं / परम अतीन्द्रिय, अनुपम, बाधारहित, निराकुल स्वरस का निरन्तर अखंड रूप से पान करते हैं, उसमें अन्तर नहीं पड़ता है। सिद्ध भगवान और कैसे हैं ? असंख्यात प्रदेशी चैतन्य धातु के ठोस घनपिंड रूप हैं, अमूर्तिक चरम शरीर (अन्तिम परम औदारिक शरीर) से