Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust

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Page 17
________________ प्रथम अधिकार : वंदनाधिकार इसप्रकार मंगलाचरण पूर्वक अपने इष्ट देवों को नमस्कार करके ज्ञानानन्द पूरित-निर्भर निजरस नाम के शास्त्र का अनुभवन (प्रकाशन) करूंगा / इसलिये हे भव्य तू सुन - इष्टदेव कैसे हैं, यह शास्त्र कैसा है और मैं कैसा हूँ - वह कहता हूँ / इष्टदेव तीन प्रकार के हैं - (1) देव (2) गुरु (3) धर्म / देव भी दो प्रकार के हैं - (1) अरिहन्त (2) सिद्ध / गुरु तीन प्रकार के हैं - (1) आचार्य (2) उपाध्याय (3) साधु / धर्म एक ही प्रकार का है / इनका विशेष रूप से भिन्न-भिन्न निरूपण करता हूँ। ___ अरिहन्त देव का स्वरूप :- अरिहन्त देव कैसे हैं ? परम औदारिक शरीर में पुरुषाकार आत्म द्रव्य है, और घातिक अर्थात जिनने घातिया कर्म-मल का घात (नाश) किया है, मल को धोया है तथा अनन्त चतुष्टय को प्राप्त किया है / वह (आत्म द्रव्य) निराकुल, अनुपम, बाधा रहित, ज्ञान स्वरस से पूर्ण भरा है / लोकालोक को प्रकाशित करते हुये भी ज्ञेयरूप परिणमन नहीं करता है / एक टंकोत्कीर्ण ज्ञायक स्वभाव को धारण करता है तथा शान्त रस से अत्यन्त तृप्त है / क्षुधा आदि अठारह दोषों से रहित हैं। निर्मल (स्वच्छ) ज्ञान का पिंड है / जिसके निर्मल स्वभाव में लोकालोक के चराचर ( चर अर्थात चलने वाले और अचर अर्थात स्थिर) पदार्थ स्वयं आकर प्रतिबिंबित हुये हैं, मानों भगवान के स्वभाव में पहले से ही मौजूद थे / उनके निर्मल स्वभाव की महिमा वचनों में नहीं कही जा सकती है। अरिहन्त देव की स्तुति अरिहन्त देव और कैसे हैं ? जैसे सांचे में धातु चांदी का पिंड बनाया जावे उसी प्रकार अरिहन्त चैतन्य धातु के पिंड हैं, परम औदारिक शरीर में

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