Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार ___(9) जिसप्रकार आचार्य कुन्दकुन्ददेव ने आगम को सामने रख कर सुप्रसिद्ध अध्यात्म ग्रन्थ “समयसार" की रचना की थी, वैसी ही अध्यात्म को सामने रखकर ब्र. रायमल्लजी ने “श्रावकाचार" की रचना की। वास्तव में चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग का सुमेल है। (10) किसी एक ग्रन्थ के आधार पर नहीं, किन्तु उपलब्ध सभी श्रावकाचारों का सार लेकर इस ग्रन्थ की रचना की गई। (11) सामान्य जन भी समझ सकें, इस बात को ध्यान में रखकर, स्थान-स्थान पर दृष्टान्त दिये गये हैं। (12) प्रतिदिन की सामान्य क्रियाओं की भी विधि और उनके गूढ़ अर्थ को स्पष्ट किया गया है। ___(13) हेतु, न्याय, दृष्टान्त, आगम, प्रमाण आदि के उपयोग के साथ ही शास्त्रीयता की लीक से हटकर सरल, सुबोध शैली में इस श्रावकाचार की रचना की गई है। . (14) विषय को स्पष्ट करने के लिये अनेक स्थानों पर, प्रश्न प्रस्तुत कर उनका समाधान किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ भी रत्नकरण्ड श्रावकाचार की भाँति ही श्रावकाचार ग्रन्थों में अत्यन्त प्रसिद्ध हुआ है। ग्रन्थ की रचना शैली सरल है। प्रसाद गुण से युक्त होने पर भी स्थान-स्थान पर काव्यात्मक छटा तथा अलंकारों का समुचित प्रयोग लक्षित होता है। कल्पना के यथोचित समावेश से नई-नई उपमाओं तथा दृष्टान्तों से रचना भरपूर है / ग्रन्थ की यह विशेषता है कि इसमें अपने समय की बोली जाने वाली ठेठ ढूंढारी भाषा का प्रयोग है। भाषा में प्रवाह तथा मधुरता है। लेखक ने संस्कृत की शब्दावली का कम से कम प्रयोग किया है, इसलिए इसकी भाषा ठेठ है / ठेठ भाषा में वह भी गद्य में लगभग तीन सौ पृष्ठों की एक बड़ी रचना करना एक सच्चे लेखक का ही कार्य हो सकता है। 243 शिक्षक कॉलोनी, नीमच (म.प्र.)