Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 16
________________ * प्रस्तावना संसार अहि६ माह ८ समयमें ६०८ जीव मोक्ष जाते हैं और ६०८ जीव ही नित्यनिगोदसे निकलकर व्यवहारराशिमें प्रवेश करते हैं जिससे व्यवहार राशिमें जीवोंकी संख्या बराबर उतनी ही बनी रहती हैं। इसप्रकार मोक्षमें सिद्ध जीव भी अनादिकालसे हैं और संसारी जीव भी अनादिसे हैं। कभी भी ऐसा नहीं था कि संसारी जीव तो हों और मुक्तजीव न हों, क्योंकि सभी पदार्थ प्रतिपक्षसहित उपलब्ध होते हैं, "सव्वपयत्था सपडिवक्खा" ऐसा सिद्धान्तवाक्य श्री कुन्दकुन्दाचार्यने कहा है। यदि कभी भी मुक्तजीवका अभाव माना जावेगा तो मुक्तजीवोंके प्रतिपक्षभूत संसारीजीवोंके भी अभावका प्रसंग आ जावेगा। यदि कहा जावे कि भव्य जीव निरन्तर मोक्षको प्राप्त होते जा रहे हैं इसलिए उनकी संख्या कम होती जा रही है, इसप्रकार मोक्ष जाते-जाते सब जीव मोक्ष चले जायेंगे। सो ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि सिद्धराशि और सम्पूर्ण अतीतकालसे अनन्तगुणे जीव एक निगोदशरीर में होते हैं। कहा भी है एव विगोदसरीरे जीवादव्ब-प्यमाणदो दिट्ठा । सिद्धेहि अनंतगुणा सव्वेण वितीद-कालेण | गो. जी. का. १९६ ।। I दूसरी बात यह है कि सर्वभव्यजीवोंके मुक्त हो जानेपर भव्यसिद्धिक जीवोंका अभाव होनेसे उनके प्रतिपक्षी अभव्यजीवोंके अभावका भी प्रसंग प्राप्त होगा तथा भव्य - अभव्य दोनोंप्रकारके जीवोंका अभाव होनेसे संसारीजीवोंका अभाव हो जाता है। संसारीजीवोंका अभाव होनेपर मुक्तजीवोंके अभावका प्रसंग आ जावेगा, क्योंकि सभी पदार्थ प्रतिपक्षसहित होते हैं । संसारी व मुक्त दोनों प्रकारके जीवोंका अभाव होने जीवद्रव्यका अभाव हो जावेगा तथा जीवद्रव्यका अभाव होनेपर उसके प्रतिपक्षी अजीवद्रव्यके अभावका प्रसंग आजावेगा, किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि जीव व अजीव अनादिअनन्त हैं, उनका कभी भी अभाव हो नहीं सकता। जीव अजीवादि द्रव्योंकी जितनी संख्या है उसमें न तो एक कम हो सकती और न एक बढ़ सकती है, क्योंकि ये छहों द्रव्य नित्य व अवस्थित हैं । विज्ञान (Science) का भी सिद्धान्त है कि "Nothing is created, nothing is destroyed". इसप्रकार अनादिकाल से मुक्तजीवोंके सिद्ध हो जानेपर मोक्षमार्ग भी अनादिकाल से चला आ रहा है | विदेहक्षेत्र में तो मोक्षमार्ग कभी बन्द होता ही नहीं। जितने भी जीव मुक्त अर्थात् सिद्ध हुए हैं, वे सब संसारी थे, मोक्षमार्गपर चलकर कर्मबन्धनको काटकर मुक्त हुए हैं। मुक्त शब्द ही पूर्वबंधका द्योतक है। इस प्रकार मोक्षमार्ग प्रवाहरूपसे अनादि सिद्ध हो जानेपर अपौरुषेय सिद्ध हो जाता है। तीर्थंकरादि १. ज. ध. पु. ३. पृ. २००/ २. ध. पु. १४ पृ. २३५ । ३. नित्यावस्थितान्यरूपाणि (त. सू. ५ / ४ ) ४. "मुक्तश्चेत् प्राक् भवेद्बन्धो नो बन्धो मोचनं कथम् । अबंधे मोचनं नैव मुञ्चेरर्थी निरर्थकः । बृ. द्र. सं. गाथाः ५७ की टीका

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