________________
नहीं करना है लेकिन वे जो कहें, वह करना है इसलिए हमें उनके जीवन में हुई गलतियों का अनुकरण नहीं करना है लेकिन हम से कभी ऐसी गलतियाँ न हों, ऐसी जागृति रखकर हमेशा के लिए भूल रहित बनना है, तब फिर मोक्ष मार्ग पूर्ण होगा।
यहाँ पर लिखी हुई दादाश्री के पूर्वाश्रम की सभी बातें निमित्ताधीन निकली हैं, लेकिन अंदर से उन्हें खुद को आत्मदशा की संपूर्ण जागृति बरतती है।
एक बार सत्संग में रात को उनकी फैमिली की बातें निकली थीं। उसमें लोगों ने तरह-तरह की बातें पूछीं और दादाश्री ने बातें की कि, 'हमारे भाई, हमारी भाभी, हमारी मदर ऐसी थीं, हमारे फादर ऐसे थे'। अंत में उन्होंने कहा कि, 'आज आप सब लोग तो ओढ़कर सो जाओगे जबकि मुझे तो पूरी रात प्रतिक्रमण करने होंगे क्योंकि हम आत्मा हैं, आत्मा का न भाई होता है, न भाभी होती है। वे सब भी आत्मा हैं लेकिन सभी को रिलेटिव रूप से देखा। अतः हमें आज पूरी रात यह जितने भी राग-द्वेष वाले वाक्य बोले गए हैं उन सभी के प्रतिक्रमण करके मिटाना पड़ेगा!'
यहाँ पर उनकी वह समझ दृष्टिगोचर होती है कि वे खुद, आज जिस आत्म स्वरूप में हैं, उसी स्वरूप में रहना चाहते हैं। आज वे खुद पूर्व में उदय में आई दशाओं में नहीं हैं, आज खुद आत्मा रूपी हैं, फिर भी उन्होंने अपने पूर्वाश्रम की जो बातें वाणी में बोलीं, उन्हें निश्चय दृष्टि से मिटा देना पड़ेगा। बोलते समय भी जागृति रहती है कि 'यह मैं नहीं हूँ और वह खुद वह नहीं है, वह भी आत्मा है, मैं भी आत्मा हूँ'। फिर भी उदय में ऐसा बोलने का मौका आया इसलिए साफ करना पड़ेगा। प्रकट ज्ञान अवतार की यही अद्भुतता है। खुद का आत्मापन चूकना नहीं है और ज्ञान से पहले अज्ञान दशा में व्यवहार की जो गलतियाँ हुई थीं, वे घटनाएँ बता दी और साफ कर दीं। साथ ही साथ निश्चय से तत्वदृष्टि न चूक जाएँ, वह बात भी बता दी। इस प्रकार निश्चय व व्यवहार दोनों शुद्धता में आ गए। इसीलिए
17