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उनके जीवन में माता-पिता, भाई-भाभी, चाचा-भतीजे, पत्नी, मित्र वगैरह लोगों के बाह्य व्यवहार और आंतरिक समझ, प्राकृतिक गुण-दोष व उनके साथ उन्हें खुद को क्यों, किसलिए, कैसा व्यवहार किया, ज्ञानदशा में रहकर वे इन सभी बातों का सूक्ष्मता से वर्णन कर पाए हैं। प्रकृति के पॉज़िटिव-नेगेटिव, गुण-दोषों की बातें और उनके प्रतिक्रमण कितने पछतावे सहित, किस प्रकार से किए हैं, वह सब ज़ाहिर किया है। जैसे कि किसी अन्य व्यक्ति की बात कर रहे हों, उस प्रकार निष्कपट रूप से, निखालसता से बता दिया है।
इस संसार में गुरु से संबंधित, भगवान से संबंधित, यमराज से संबंधित अनेक प्रकार की अज्ञान मान्यताओं का खातमा उन्होंने बचपन से ही कर दिया और उन्होंने खुद ने सही बात को समझा और उसे निर्भयता से बता सके और सामान्य लोगों की नासमझी दूर करके उन्हें निर्भय बना सके।
दादाश्री ने खुद के जीवन व्यवहार की सभी गलतियाँ महात्माओं के सामने बता दीं जैसे कि खुद आलोचना करके अपनी भूलों से मुक्त हो गए! ऐसे महान पुरुष खुद की भूलें सब के सामने बता दें, हर जगह 'नो सीक्रेसी', यह हकीकत वास्तव में प्रसंशनीय है। उन्होंने क्या भूलें की, किस प्रकार से भूलों में से बाहर निकले और कैसे भूलों से हमेशा के लिए मुक्त हुए, क्या बोध लिया और उस जागृति को जिंदगी भर हाज़िर रखा, फिर कभी भी रिपीट नहीं होने दिया, ऐसे समझदारी भरे पुरुषार्थ से खुद साफ होकर मोक्ष के लायक बन गए।
यहाँ दादाश्री हमें यह बोध सिखा जाते हैं कि जीवन में खुद की भूलों को पहचानो, उनके लिए पछतावा करके भूलों में से मुक्त हो जाओ। जब भूलें खत्म हो जाएँगी तो यहीं पर मोक्ष बरतेगा।
दादाश्री के बचपन में लोकसंज्ञा, संगत और पूर्वकर्म के उदय के कारण ताश का तीनपत्ती का खेल खेलना और अंगूठी की चोरी करना ऐसी कुछ घटनाएँ हुई हैं लेकिन उन उदाहरणों को हमें नेगेटिव तरीके से नहीं लेना है। दादाश्री कहते थे कि ज्ञानी जो करते हैं वह
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