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जीवन के बारे में अनेक प्रश्न पूछे हैं और दादाश्री ने अपने दर्शन में देखकर यथार्थ रूप से उन सब के जवाब दिए हैं।
परम पूज्य दादाश्री द्वारा वर्णित उनके जीवन की घटनाओं को संकलित करके प्रकाशित करने के इस प्रयास से यह जीवन चारित्र ग्रंथ भाग-1 हमारे हाथ में आया है। उसमें उनके बचपन की घटनाएँ तथा पारिवारिक जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।
परम पूज्य दादाश्री ने जैसा बताया उसी रूप में यह संकलन प्रकाशित हुआ है। उन्हीं के शब्दों में लिखित यह पुस्तक वास्तव में एक अद्भुत उपहार है ! हमारे लिए यह गौरव की बात है कि जिस प्रकार से परम पूज्य दादाश्री ने उनके अनुभव के निचोड़ के रूप में आत्मज्ञान और मोक्षमार्ग का पुरुषार्थ दिखाया है, उसी प्रकार से उन्हीं के दर्शन द्वारा लिखित ये जीवन प्रसंग हमेशा के लिए एक यादगार बन जाएँगे। जिसे पढ़ते ही हमें उस समय का, उनकी दशा का, उनके व्यक्तित्व का, उनकी सूझ- समझ और बोधकला के दर्शन होते हैं।
परम पूज्य दादाश्री ने ज्यों का त्यों, कुछ भी गुप्त रखे बिना, सादी-सरल शैली में सब बता दिया है जो उनके निखालस व्यक्तित्व की झलक दे जाता है। उनका मोरल और उनकी ज्ञानदशा वास्तव में प्रसंशनीय हैं। रिलेटिव में लघुत्तम बनकर रियल में गुरुतम बनने की दृष्टि तो कोई विरला ही रख सकता है। स्कूल में लघुत्तम साधारण अवयव सीखते हुए भगवान की परिभाषा ढूँढ निकाली कि भगवान जीवमात्र में अविभाज्य रूप से रहे हुए हैं। कैसी गुह्य तात्विक दृष्टि ! ऐसी दृष्टि ही बता देती है कि बचपन में भी उनका आध्यात्मिक डेवेलपमेन्ट कितना उच्च था ! इस समझ के आधार पर वे लघुत्तम की तरफ गए और इसी रवैये ने उन्हें परमात्म पद से नवाज़ा !
दादाश्री खुद कहते थे कि हमारी मति विपुल है, हमारी दृष्टि विचक्षण है । कोई भी घटना होती थी तो उसमें हमें चारों तरफ के हज़ारों विचार आ जाते थे और सार निकाल देते थे। बड़े-बड़े शास्त्रों का सार भी वे पेज पलटकर सिर्फ पंद्रह मिनट में निकाल देते थे और समझ जाते थे कि यह शास्त्र आध्यात्मिकता के कौन से मील पर है।
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