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कर सके। आज इस बात का आनंद हो रहा है कि पूज्य नीरू माँ की भावना के अनुसार ज्ञानी पुरुष का अद्भुत जीवन चारित्र 'ज्ञानी पुरुष' भाग-1 ग्रंथ के रूप में जगत् को अर्पित हो रहा है। दादा के श्रीमुख से निकली हुई वाणी में उन्होंने खुद ने अपने जीवन की बातें बताई हैं। उस वाणी का इतना कलेक्शन है कि भविष्य में उनके जीवन की बातों पर 'ज्ञानी पुरुष' के और अधिक भाग छप सकेंगे।
हमारे पास तरह-तरह की बातों के सुंदर कलेक्शन तो हैं ही। सभी केसेट लिखी जा चुकी हैं और उनमें से बेस्ट कलेक्शन मिला है और बहुत ही अच्छी, सूक्ष्म बातें बहुत महेनत से ढूँढकर रखी गई हैं। इस कार्य के होने में बहुत बड़ी टीम है, जिसमें ब्रह्मचारी भाई-बहनें तथा कितने ही महात्मा भाई-बहनें दिन-रात मेहनत कर रहे हैं और फिर कितने ही दूसरे लोग डायरेक्टली-इनडायरेक्टली सहायक हुए हैं। इन सब की मेहनत के परिणाम स्वरूप इतनी अच्छी चीज़ इतनी जल्दी तैयार हो सकी है।
'ज्ञानी पुरुष' के इस ग्रंथ में हमारे पास दादाश्री द्वारा बोली गई वाणी का जो कलेक्शन था उसके आधार पर सब टैली करके-जाँच करके और बहुत ही सतर्कता पूर्वक संपादन की ज़िम्मेदारी अदा हुई है, फिर भी इस पुस्तक के संकलन में यदि क्षति रह गई हो तो उसके लिए सुज्ञ वाचक वर्ग हमें क्षमा करें।
परम पूज्य दादाश्री का यह जीवन चारित्र जगत् को समर्पित करते हुए हम धन्यता का अनुभव कर रहे हैं। हम सभी महात्मा इस ग्रंथ का गहराई से अभ्यास करके, मानव में से महामानव बने इन व्यक्ति के गुणों की प्रशंसा और आराधना करेंगे और इसे नकारात्मक या लौकिक दृष्टि से नहीं तौलते हुए, इसे पॉज़िटिव और अलौकिक दृष्टि से तौलकर उनके ऐसे गुणों और व्यक्तित्व को आत्मसात करने की भावना करके, स्वकल्याण के पुरुषार्थ के साथ जगत् कल्याण के मिशन में हम यथायोग्य योगदान करके कृतार्थ हों इसी अंतर की अभिलाषा सहित आत्मभाव से प्रणाम।
दीपक के जय सच्चिदानंद
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