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मोक्ष में जाने के लिए संसार बाधक नहीं है, मात्र अपनी नासमझी और अज्ञान ही बाधक है। यह ज्ञान गृहस्थ जीवन में रहकर उन्होंने खुद ने अनुभव किया और सभी सांसारिक लोगों को वही अनुभव ज्ञान दे सके।
यह वाणी जो अभी जीवन चारित्र के रूप में इस ग्रंथ में संकलित हुई है, उसकी विशेषता यह है कि ये सारी बातें दादाश्री ने खुद ने 1968 से 1987 के दौरान बताई हैं जैसे कि ये घटनाएँ कल ही हुई हों और उस समय खुद को क्या विचार आए थे, कौन सा ज्ञान हाज़िर हुआ जिसकी वजह से उल्टा चले और उसकी वजह से कितनी मार पड़ी, उसके बाद अंदर कौन सी समझ प्रकट हुई जिससे वे उसका सॉल्यूशन ला सके, इतने वर्षों बाद भी वे ये सारी बातें बता सके। बड़ी उम्र में भी अपने बचपन से लेकर जीवन में हुई अलग-अलग घटनाओं में क्या हुआ था और खुद को अंदर क्या-क्या उलझनें हुई थीं और खुद उनमें से किस तरह बाहर निकले, वह सब कह पाना
और वह भी ज्यों का त्यों, वह बहुत ही आश्चर्यजनक कहा जा सकता है। दादाश्री कहते थे कि ज्ञान होने से पहले मैं याददाश्त के आधार पर कह सकता था कि उस दिन ऐसा हुआ था लेकिन वीतराग होने के बाद में याददाश्त नहीं रही। यदि कोई प्रश्न पूछे तो उपयोग वहाँ पर जाता है और दर्शन में हमें पहले क्या कुछ हुआ था वह ज्यों का त्यों दिखाई देता है और बात होती है।
शुरुआत के सालों में परम पूज्य दादाश्री के सत्संगों की वाणी पूज्य नीरू माँ डायरी में लिख लेते थे। जब से टेपरिकॉर्डर आया तब से ऑडियो केसेट में रिकार्ड करने लगे। वह केसेट वाली वाणी कागज़ पर उतारकर, एडिटिंग करके पूज्य नीरू माँ ने चौदह आप्तवाणियों और अन्य कई पुस्तकों का संकलन किया था। शुरू से ही उनकी दिल की भावना थी कि इस संसार को ऐसे महान ज्ञानी पुरुष की पहचान ज्ञानी पुरुष के रूप में करवानी है। इतना ही नहीं उनका जीवन चारित्र बताकर लोगों को उनके व्यवहार ज्ञान से संबंधित समझ प्राप्त हो सके कि व्यवहारिक जीवन में उनकी कैसी अद्भुत समझ थी जिसकी वजह से जीवन में मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति के साथ वे आदर्श व्यवहार
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