Book Title: Gnani Purush Part 1
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 10
________________ भगवान तो है खुद का स्वरूप, नहीं है वह कर्ता जग में किसी चीज़ का! खुद की भूलें ही हैं खुद की ऊपरी, और कोई ऊपरी नहीं है जग में खुद कौन है? जग कर्ता कौन? अज्ञान का दोहनकर, अनुभव किया विज्ञान में! हमेशा चले लोग-संज्ञा से विरुद्ध, सत्य हकीकत की खोज में नहीं की नकल किसी की, क्या मिलेगा नकल वाली अक्ल में? प्रेम वाले और हार्टिली स्वभाव, पर दुःख से खुद होते हैं दुःखी निरीक्षण करने की आदत से जाना, यह जगत् है पोलम् पोल ! जगत् दिखा विकराल दुःख भरा, इसलिए नहीं हुई मोह या मूर्छा पूरा जीवन जिये समझ सहित, जाना रिपेमेन्ट वाला है यह जगत् ! सुने हुए और श्रद्धा वाले ज्ञान से, घुसा यमराज का भय, हुए दुःखी सोच-विचार से गई उल्टी श्रद्धा, समझे कि नहीं है 'यमराज' कोई! अज्ञान से मुक्ति हुई सच्चे ज्ञान से, समझ में आया सनातन सत्य नहीं है कोई कर्ता या ऊपरी, जगत् चल रहा है नियम अधीन! शरारती स्वभाव और शरारती आदत, युक्ति अपनाकर सेठ को छेड़ा ढूंढ निकाला दंड किसे? कौन है गुनहगार? काटते हो क्यों बेकार में ही निमित्त को? अंतर सूझ से मिला ज्ञान, 'भुगते उसी की भूल' और 'हुआ सो न्याय' सोचने पर समझ में आए सही बात, मैं नहीं लेकिन है 'व्यवस्थित कर्ता'! अनेक घटनाएँ ज्ञानी के बचपन की, पढ़ते ही अहो भाव! हो जाए कैसे विचक्षण-जागृत स्वानुभव में, कोटि-कोटि वंदन यों ही हो जाएँ!

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