Book Title: Gnani Purush Part 1
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 9
________________ थे जोशीले-शरारती-साहसिक, नहीं था पसंद अघटित व्यापार न की देखा-देखी, निकालते थे सार, जाँच करते, देखते लाभ-अलाभ! समझे जब से जोखिम बुद्धि के दुरुपयोग का, हुआ बंद हँसी उड़ाना भूलों के किए पछतावे, किया निश्चय कभी न हो फिर ऐसा! व्यवहार में विनयी-नम्र-अहिंसक स्वभाव, देखा हमेशा हित औरों का औरों को खुश करते व्यवहार, नहीं दुःखाते मन कभी किसी का! न रखे आग्रह या पूर्वग्रह, बोधकला से प्रकृति पहचानकर लिया काम नहीं किया टकराव या झंझट, शांति-सुख-आनंद के लिए! विरोधी के साथ भी न रखी जुदाई, समझा हिसाब है यह मेरा लटू घूमे परसत्ता में, निर्दोष दृष्टि से देखा दोष रहित! नाटकीय संबंध रखकर सब के साथ, हिसाब चुकाए ऋणानुबंध के न राग-द्वेष-झगड़े-आसक्ति, देखकर शुद्ध किया समभाव से निकाल! ओब्लाइजिंग नेचर, ठगे गए लेकिन किया परोपकार नहीं जीया जीवन खुद के लिए, खर्चा पल-पल औरों के लिए! क्षत्रिय स्वभाव और निडरता का गुण, 'आत्मश्रद्धा' कि मुझे न होगा कुछ अनुभव करके बने संदेह रहित, कल्पना के भूत और डर से! रूठने से नुकसान खुद को ही, तय किया नहीं रूठना है कभी समझ में आया खोकर आनंद खुद का, मोल लेते हैं दुःख नासमझी से! नहीं था पसंद परतंत्रता या ऊपरी, संसार लगा सदा बंधन रूपी मोक्ष में जाते हुए भगवान भी न हों ऊपरी, 'माँ-बाप' ऊपरी लेकिन उपकारी! रिलेटिव में चलेगा ऊपरी, लेकिन नहीं चाहिए ऊपरी कोई रियल में मोक्ष हो और भगवान हो ऊपरी, लगा अत्यंत विरोधाभास जग में! खोज करके ढूंढ निकाला, भगवान तो है 'अंदर वाला' ही

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