Book Title: Gnani Purush Part 1
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 7
________________ समर्पण अहो! अहो! यह अद्भुद नज़राना विश्व को कुदरत का; 'मूलजी-झवेर बा' के आँगन में हुआ अवतरण इस महामानव का! बचपन से तेजस्वी और प्रभावशाली व्यक्तित्व दैदीप्यमान; भोले-भद्रिक और निर्दोषता, दृष्टि पॉज़िटिव-पवित्र और विशाल! 'न ममता-लोभ या लालच', 'अपरिग्रही', न थी आदत संग्रह करने की; सरलता-निष्कपटता-वैराग्य, नहीं भीख या कामना कि पूजे कोई! प्रेमल-लागणी वाले और सहनशीलता, सदा परोपकारी स्वभाव; अनुकंपा सभी जीवों के प्रती, कभी नहीं करते थे तिरस्कार या अभाव! कभी न देखें अवगुण किसी के, देखकर गुण करते डेवेलप; कहते रखो मन विशाल, एनी टाइम डोन्ट डिस्मिस ऐनीबडी! थी भावना असमान्य बनने की, नहीं थी रुचि सामान्य में; नहीं लघुताग्रंथि, न होते प्रभावित किसी से, रहे निरंतर स्वसुख में! स्वतंत्र सिद्धांत से चले खुद, आती थी अदंर से अकल्पनीय ज़बरदस्त सूझ; खुद अंदर वाले के बताए अनुसार चले, आवरण टूटने पर रास्ता मिले! परिणाम पकड़ने वाला ब्रेन, हर एक कार्य के पीछे दिखता परिणाम; वैज्ञानिक स्वभाव मूल रूप से, ज्ञान की बात ले जाते विज्ञान में! माता-पिता के संस्कार सिंचन से, गुण बीज अंकुरित होकर पनपा; एश्वर्य प्रकट ऐसे संस्कारों से, सहानुभूति से हुआ जीवन सार्थक! बोधकला से उत्पन्न हुई सूझ, तपोबल से प्रकट हुआ ज्ञान; सोलह कलाओं वाला खिला सूरज, अंतर में झलहल आत्मज्ञान ! अनेक गुण संपन्न बचपन निराला, यहाँ इस ग्रंथ में समाया; वर्णित हुआ उनके स्वमुख से और संकलित होकर समर्पित जगकल्याण के लिए!

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