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है, इस चेतना में अजब शक्ति है, जो एक क्षण में युगों का विस्तार कर सकती है, और युगों को क्षणमात्र में समाहित कर सकती है, यह चेतना देह से भिन्न है। इस धर्मरत्न के सूत्रो में अमीधारा भरी पडी है, जिसके पठन, चिंतन, मनन द्वारा हमें अपने गुणरत्नों को पहचानना है, प्राप्त करना है ।
समय के साथ साथ उपदेश के तरीके, तर्क, दलीलें शायद बदल भी सकते हैं, पर सूत्र नहीं बदलते, लोगों को नयी जागृति की बातें सुननी अच्छी लगती है, पर हमें यह नहीं पत्ता की इन सूत्राक्षरों की चिनगारी लाखों वर्षो बाद भी भक्तो के लिए प्रेरणारूप बन सकती है।
जो लोग आत्मा का उत्कर्ष करना चाहते है उन्ही के लिए यह बोध उपदेश दिया गया है, जो व्यक्ति रत्नों की अपेक्षा रखता है, वही रत्नों की कीमत आँक सकता है, अतः धर्म रत्न भी जो योग्य हो, उन्हें ही देने चाहिए।
धर्म को रत्न की उपमा दी गई है क्योंकी उपमा श्रेष्ठ की ही दी जाती है । विश्व की सभी स्थूल वस्तुओं में रत्न कीमती है, वैसे ही धर्म सभी रत्नों में बहुमुल्य है। हमें इस श्रेष्ठ धर्म को समझने के लिए अपनी दृष्टि बदलनी होगी, तभी हम धर्म रत्न प्राप्ति के अधिकारी बन सकेंगे ।
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