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सत्कथा
बारहवें सोपान उपर चढ़ा हुआ व्यक्ति, यदि गुणानुरागी है, तो वह तेरहवें गुण सत्कथा में सहज ही प्रवेश कर सकता है। सत्कथा यानि, अच्छी कथा कहने वाला, जिससे कलह, कंकास, दुःख की व्यथा कम हो जाए।
आज मातृभावना से दूर हुई अपनी मानव जाति, केवल रूस और अमेरिका में ही नहीं, दुनिया में हर जगह प्रांतवाद और राष्ट्रवाद के टुकडों में बट रही है। व्यक्ति अपना ही भला सोचने में लगा हुआ है, उससे दृष्टिभेद, विचारभेद, मतभेद और मनभेद बढ़ रहे हैं।
देश कथा और प्रांत कथा की तरह आज स्त्री कथा भी बहुत प्रचलित हुई है, इस कथा में डूबे इन्सान को दूसरा कुछ भान ही नहीं रहता। स्त्रीयों के अल्प कपड़ों में चित्र, उनकी चर्चा आदि खूब व्यापक बने हैं। Beauty contest में देह का प्रदर्शन तो दूसरी तरफ स्त्री की निंदा करनेवाले वर्ग की भी कमी नहीं है। पुराने समय की कहावत है, “चार मले चोटला तो भांगे घरना ओटला'' परंतु आज इसे बदलने की जरूरत है, “चार मले चोटली, तो तोडी नाखे रोटली।"
बार बार कमरे में धुंआ करने के फलस्वरूप दीवारों पर उसका असर आ ही जाता है, वैसे ही आज स्त्रीकथा से लोगों के मानस विकृत हो गये हैं। जिससे अच्छे विचारों को दिमाग में आने के लिए स्थान ही नहीं रह गया है। १२२
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