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१३८ वह भी भिखारी ही था, परंतु दिल का अमीर था, अमीरी, गरीबी इन्सान के हृदय में रहती है।
ग्रंथकार फरमाते हैं कि प्रवृत्ति ऐसी करो जिसमें "बहु लाभम् अल्प क्लेशम्।" क्लेश यानि उद्वेग निकलता आए, ऐसा काम नहीं करना चाहिए। प्रवृत्ति आदमी के मन को स्वस्थ करने के लिए है, यदि समाधि टूटती हों, तो पच्चक्खाण छुड़ाकर भी पारणा करवाने में पाप नहीं है। "सब्ब समाहि वत्तिया गारेणं' पच्चक्खाण में भी यह आगार रखा है। पच्चक्खाण समाधि के लिए है, मात्र बाह्य पच्चक्खाण ही रह जाए और अंतर समाधि टूट जाए, इसका क्या अर्थ है?
प्रवृत्ति, क्लेश हीन तथा सुंदर हों, ऐसी होनी चाहिए,तो ही विकास सभंव है। हमारे प्रत्येक काम में चिंतन होना चाहिए, चिंतन बिना हमारा जीवन श्रेष्ठ नहीं बन सकता। दीर्घदृष्टि रखने वाला इस लोक तथा परलोक दोनों को सुंदर बनाता है।
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