Book Title: Dharma Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Divine Knowledge Society

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Page 199
________________ १७६ दूसरों की अर्थहीन बातें सुनने में, हम पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं । दुनिया में कितने अरब लोग है ? क्या आप जानते है ? यदि हम सबकी बातें सुनेंगे तो धर्म करने के लिए समय कहाँ से लाएंगे ? इसलिए भगवान महावीर ने कहा है, "पहले तू अपने आप को जान, यदि एक अपने को जान लिया तो सबको जान जाएगा ।" जो मिट्टी को जानता है, वह मिट्टी के बर्तनों को भी जानता है। जो गेहूं के आटे को जानता है, वह रोटी, व आटे से बनने वाली सभी चीजों को जानता है । द्रव्य के रूप, नाम बदलते हैं, परंतु मूलभूत वस्तु तो वही रहती है। अपनी आत्मा को पहचानने वाला, सब आत्माओं को पहचान लेगा । विचार श्रेणी बदलती है, सत्य नहीं बदलता, हमें तो पुराने तथा नये का समन्वय ही करना है। काल के प्रवाह में मूलभूत सत्य कभी धुंधला नहीं पडता, उस पर काल का जंग कभी नहीं चढ़ सकता, न चढेगा। जगत मात्र परिवर्तनशील है, रूप, रंग, नाम भिन्न दिखते हैं, परंतु अंदर बसी हुई आत्मा तो वही है, हमें उसके दर्शन करने हैं, यही हमारा लक्ष्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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