Book Title: Dharma Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Divine Knowledge Society

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Page 198
________________ ४८ लुब्ध लक्ष हमारे अंतकरण में तिमिर की जो पर्ते जमा हो गई हैं, उन्हें दूर हटाने के लिए महातेज की आवश्यकता है। इस तेज की झांकी का अनुभव करना, जीवन का मुख्य हेतु है, इसी का नाम है लब्धलक्ष। जीवन में अनेकानेक वस्तुओं की प्राप्ति का ध्येय, अभिलाषा बनी रहती है, परंतु हमारे जीवन का पूर्ण ध्येय क्या है? इसकी खबर हमें स्वयं नहीं होती। आज स्थिति ऐसी है कि जिसे छोड़कर जाना है, उसके पीछे मानव पागल बना है, परंतु जो साथ आने वाला है, ऐसा महातेज विस्मृत हुआ है, उसका हमें दुख नहीं है। दुनिया में आज लोग साधनों को ही साध्य मान बैठे है, क्या यह पागलपन नहीं? इसीलिए आज साधन ही साध्य बन गये हैं। सुबह से शाम तक हम संग्रह करने में जुटे हुए हैं, परंतु ख्याल रहे कि यह हमारा जीवन लक्ष्य नहीं है। यह जो निरर्थक बातों में समय व्यर्थ करना, हमारी आदत बन गई है, इसका त्याग जीवन की गहराईयों तक जाकर जीवन के रहस्यों को प्राप्त करना, इस जीवन का ध्येय होना चाहिए, यह हम भूल ही गये हैं। जिन्दगी जीने की खातिर जी लेना, आयुष्य पूर्ण होने को आए तब डॉक्टर की दवाईयां खा लेना, ऐसा यंत्रवत जीवन, यदि अधिक जी भी लें तो भी क्या फायदा? हा हा १७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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