Book Title: Dharma Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Divine Knowledge Society

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Page 196
________________ १७३ हक का लेंगे तो अपने हाथ से चला ही जाएगा, टिकेगा नहीं। अंकगिनती करने वाला यंत्र जड है, परंतु वह गल्ती नहीं करता, इन्सान गल्ती कर बैठता है, वैसे ही कर्म भी जड है, योग्य परिणाम देने की पद्धति जड पदार्थों की व्यवस्था में भी है। हम जैसे जैसे स्वर्ण इकट्ठा करने की लालसा बढ़ाते है, वह बढ़ती ही जाती है। देह की देखभाल में इन्सान अपना कितना कीमती समय बरबाद कर देता है। सगे संबंधी, विशाल जनसमुदाय को इकट्ठा करना अच्छा लगता है, परंतु इन्सान यह भूल जाता है कि वह जन्मा भी अकेला था और जाएगा भी अकेला ही। ___इन्सान को सोने के लिए दो गज जमीन, खाने के लिए मुट्ठीभर अनाज, पहनने को दो जोड़ी वस्त्रो की जरूरत होती है। फिर भी वह कपड़े और अलंकारों के संग्रह से पूरी अलमारियां भर कर रखता है। सद्गुणी व्यक्ति के भीतर, प्रलोभनों तथा मानवता के बीच संघर्ष चलता है, परंतु वह ऐसे प्रलोभनों पर विजय प्राप्त करके आगे कूच करता है। तब ऐसा परहितनिरत : मनुष्य अपने आसपास वालों की सबकी भलाई सोचकर, समाज कल्याण में सहायक बनता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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