Book Title: Dharma Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Divine Knowledge Society

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Page 203
________________ १८० है। इसीलिए ज्ञानियों ने फरमाया है कि शक्कर की मिठास का अनुभव करने के लिए सौ ग्रंथो को पढ़ने से अच्छा है कि मुँह में शक्कर का एक टुकडा डाल दो तो अधिक ज्ञान व आनंद मिलेगा। काया कृश होगी तो चलेगा, परंतु आत्मा को कृश करेंगे तो नहीं चलेगा। हमने देखा है कि कई तेजस्वी पुरुषों की काया कृश होती हैं, परंतु अंदर से आत्मा दिव्य तेज से जगमग होती है। आज तक हमने काया की सजावट में ही जीवन बिताया है, परंतु अब हमें अपनी आत्मा को पुष्ट करना है। एक व्यक्ति के हाथ में दो कुंभ दिए। बाएं हाथ में संपत्ति का कुंभ तथा दांए हाथ में शांति का कुंभ दिया और कहा, “कि दुनिया में तुम संपत्ति बाँटना और शांति रखना, तो तुम पूर्ण सुखी होंगे।" दोनों कुंभ लेकर वह जा रहा था, उस के पैर में काँटा लगा, काँटा निकालने के लिए दोनों कुंभ नीचे रखे, वापस उठाते समय दोनों अदलाबदली हो गये, लक्ष्य चूक गया। अब वह बिना समझे संसार में शांति बाँटने लगा तथा संपत्ति का संचय करने लगा। बस तब से ही संसार में मानव भूलभुलैय्या में पड़ा है, शांति बेचकर संपत्ति संजोने में लगा है। इस भूल-भूलैय्या से बाहर निकलने के लिए हमारे जीवन में यह लक्ष्य बिंदु होना चाहिए, कि संपत्ति बाँटो और शांति खरीद कर जीवन को समृद्ध बनाओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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