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लक्ष्य बिंदु
लब्ध लक्षवाला व्यक्ति, जीवन का प्रत्येक कार्य दक्षतापूर्वक करता है, व्यवस्थित एवं विचारपूर्वक करता है। जहाज जब अपना लंगर उठाता है, तो उसके पहले उसके पहुंचने का बंदर, मंजिल तय हो जाती है। जीवन के हर क्षेत्र में लक्ष्य निश्चित करना जरूरी है। हमारा जन्म क्यों हुआ? हम क्यों जी रहे हैं? इसका चिंतन मनन करना चाहिए। लक्ष्य बिना जीवन की दशा समुद्र में भटकने वाले नाविक जैसी होती है, जिसे कोई बंदर, कोई किनारा हाथ लगने वाला नहीं।
क्या हम सबकी दशा भी ऐसी ही नहीं है? सब काम के भार तले दबे हैं, किसे वक्त है, जीवन दौड़ धूप में बीत रहा है। किसी से पूछा जाए कि, “यह सब क्या कर रहे हौ? जीवन का हेतु क्या है ? किसलिए जी रहे हो? कहाँ पहुंचना है? कहाँ से आए हो?" तो किसी के पास भी सही जवाब नहीं है, आज हमारी यही दशा है।
इसलिए ज्ञानी फरमाते हैं कि शांत पलों में इसका विचार करो। हमें घर बनाना, घर खरीदना, वस्तुएं लाना, इन सबका विचार आता है, परंतु जीवन किसलिए है? इसका विचार कभी नहीं आता, जगत को एक दिन छोड़कर जाना हैं, ऐसी बात अपशुकन लगती है, किसी को पसंद ही नहीं।
परंतु हम भूल रहे हैं, कि हमें पसंद है या नहीं, यह तो अवश्यंभावी है, जन्म के साथ मरण जुडा है, काल से हमारा बचना नामुमकिन है। फिर
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