Book Title: Dharma Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Divine Knowledge Society

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Page 200
________________ ध्येय दृष्टि इस धर्मरूपी रत्न प्राप्ति के लिए, हमें इक्कीस गुणों को अपने जीवन में विकसित करने हैं। धर्मरत्न को पाने वाला धार्मिक, गुणवान होना जरूरी है। अयोग्य व्यक्ति अपने आप को धार्मिक कहलाता है, तो धर्म शब्द को लज्जित करता है। लब्धलक्ष - योग्यता की पराकाष्ठा यानि धार्मिक आत्मा। प्रथम धार्मिक कहलाना और फिर योग्यता प्राप्त करना मुश्किल है, धार्मिक कहलाने के लिए पहले गुण समपन्न होना जरूरी है। जो पहले बताए गये बीस गुणों को समझ गया है, जीवन में आचरण करता है, वही लब्ध-लक्ष है। मानव जीवन का हेतु क्या है ? हेय, ज्ञेय, उपादेय, छोडने लायक, जानने लायक और आचरण करने लायक। अच्छी लगने वाली बात, व्यक्ति या वस्तु भी यदि छोडने लायक हों तो उसे छोडना सीखना चाहिए। माँ को बेटी बहुत प्रिय होते हुए भी उसे ससुराल विदा करती है, क्यों कि वह जानती है कि उसका योग्य स्थान ससुराल ही है। ___ कुटुंब पोषण के लिए अर्थसिद्धि करनी पडती है, मगर अनर्थ सिद्धि का तो त्याग ही करना चाहिए। अर्थ सिद्धि यानि नीति, मर्यादा में रहकर अर्थप्राप्ति करना और अनर्थ सिद्धि यानि न्याय नीति को ध्यान में न रखते हुए, किसी भी प्रकार से अर्थ प्राप्ति करना, उसके पीछे ही जीवन बिताना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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