Book Title: Dharma Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Divine Knowledge Society

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ ४३ कृतज्ञता मनुष्य जीवन सद्गुणों के विकास का सुंदर धाम है। जिस तरह भौतिक जीवन को स्वस्थ रखने के लिए आहार पानी की आवश्यकता होती है, वैसे ही आत्मा की दृष्टि हेतु सद्गुणों की जरूरत होती है। जीवन का हर दिन मंगल दिन है, हर घडी सुंदर पर्व है। हर दिन को आराधनामय बनाना चाहिए। मन पवित्र, शांत, निर्मल रहे तो प्राप्त ज्ञान की धारा से, जीवन महोत्सव बन सकता है। हमें कृतघ्न नहीं कृतज्ञ बनना है। किसी के किए हुए छोटे से छोटे कार्य, उपकार को याद करके प्रतिदान चुकाना चाहिए। इसका आदर्श पाठ हमें धरती माता सिखाती है, एक दाने को वह अनंत गुणा करके हमें वापस देती है। परंतु मानव ही एक ऐसा प्राणी है, जो जितना दो, खा जाता है, इन्सान की ऐसी स्वार्थ वृत्ति बन गई है कि सब मैं ले लूं और मेरा लेने वालों का बुरा हो। कुदरत ने हमें पाँच इन्द्रियां बक्शी हैं, इन पंच भूतों का हमें ऋणी होना चाहिए, परंतु उनका बदला चुकाने के लिए, हम क्या करते हैं ? सच्चा कृतज्ञ तो वही है जो दूसरों के उपकारों का बदला चुकाने के लिए मौके का इंतजार करे। हमारे उपर पंचभूतों का, माता-पिता, गुरुजनों का तथा समाज का १६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208