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कैसे चुका पाएगा? गुरू का उपकार ऐसा है, जिसका अनेक भवों तक बदला नहीं चुकाया जा सकता।"
दुनिया में इन्सान अकेला आया है, और अकेला ही जाएगा, उसके सत्कार्य तथा परोपकार से प्राप्त पुण्य के सिवाय कुछ साथ जाने वाला नहीं है। अज्ञानी को यह ज्ञान देने वाले गुरु है, इस ज्ञान के बदले में प्रेम के सिवाय, उन्हें हम क्या दे सकते हैं?
बहुत लोग पूछते हैं कि क्रोध, मान, माया, लोभ छूटते नहीं, गुरु याद आते नहीं। इसका उपाय यह है कि ये कषाय क्यों आते हैं? खोजो इसका कारण, और सद्गुणों का बल बढाओ। ऊपर चढते हुए लोगों को नजर के समक्ष रखो, उनका अनुकरण करो गिरते हुओं का नहीं, तभी विकास संभव होगा।
गुरु के पास भी डॉक्टर की तरह अत्यंत सूक्ष्म दृष्टि है, जिससे वो हमारे अंदर के भावों को, स्थिति को समझ जाते हैं। प्राज्ञ पुरुष हमारे भीतर छुपे हुए तत्त्वों की तरफ संकेत करते हैं। हृदय में कैसे क्रोध के तिनके जल रहे हैं? मान की पहाडियां, मायारूपी झाडियां तथा लोभ के कैसे गहरे गड्ढे खुदे हुए हैं? इनमें उलझने के कारण ही इन्सान सत्यरूपी, धर्मरूपी तत्त्व का दर्शन नहीं कर सकता। इसका ख्याल तो अपना आत्म निरिक्षण करने पर ही आ सकता है।
जैन दर्शन यानि आंतरिक संशोधन की संस्कृति के दर्शन, परंतु आज तो हम छिछेरी, छोटी बातें तथा संप्रदायों की प्रसिद्धि में पड़े हुए हैं।
____ अपना सच्चा मार्ग यानि आत्मा के आरोहण का मार्ग, इसलिए भगवान ने कहा, “हे जीव तूने बाहर का सब कुछ किया, परंतु आंतरिक संशोधन का कार्य नहीं किया, इसलिए हैरान, परेशान हैं, अब इसके पीछे पड जा।"
अब हम वीतराग भगवान के साथ मंदिर में बात करते हैं, “तुम ऐसे शांत और मैं ऐसा क्रोधी? तुम ज्ञान की पूर्ण ज्योत और में अज्ञान से भरा काला कोयला? तुम्हें जगत पूजता है, तो भी निराभिमानी और मुझे कोई
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