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वृतज्ञता का संदेश
व्यक्ति के अंदर सोए पड़े हुए सद्गुण जैसे जैसे खिलते हैं, आंतरिक शक्ति बढ़ती है। धक्का लगने से बालक गिर सकता है, युवा नहीं गिरेगा जल्दी, ऐसे ही सद्गुणों से अलंकृत जिसका यौवनकाल है, वह दुर्गुणों रूपी धक्के से नहीं गिरेगा। सजाग रहेगा। सुगंधित तेल का पड़ा हुआ एक बून्द जिस तरह पानी की पूरी बाल्टी को सुगंधमय बना देता है, वैसे ही एकआध सद्गुण भी यदि जीवन में विकसित हो जाएं तो पूरा जीवन उस सद्गुण रूपी फूल से महक उठेगा। सज्जन लोग ऐसे ही पानी जैसे होते हैं जो सद्गुण रूपी सुगंध को व्यापक बनाते हैं। दुर्गुण गर्म तेल की भांति होते हैं, जिसमें पानी गिरे, तो वह भी जल जाता है।
एक नाई था, उसे ऐसी विद्या प्राप्त हुई थी कि किसी भी वस्तु को बिना सहारे हवा में स्थिर रख सकता था। एक साधु को पत्ता चला तो उसने वह विद्या नाई से सीख ली। परंतु अब साधु दूसरों को कहने लगा कि यह विद्या उसने स्वयं हिमालय में जाकर, साधना करके प्राप्त की है। नाई को गुरु कहना उसके लिए शर्मनाक था। झुठ बोलने का अंजाम यह हुआ कि आकाश में स्थिर उसकी तुंबडी उसके सिर पर पडी, और सिर फूट गया।
सद्गुणों से रहित मानव जीवन शून्य है। कालचक्र के माप से मापा जाए, तो सो वर्ष का आयुष्य एक बिन्दु के समान भी नहीं है। ऐसा किमती
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