Book Title: Dharma Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Divine Knowledge Society

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Page 163
________________ १४० अपने लिए जाप करे, और फल हमें मिल जाए। ऐसा तो कैसे हो सकता है ? आज ब्राह्मण जाप करते हैं और शेठ लोगों से पैसे ले लेते है, धर्म में भी धोखा घडी प्रवेश कर गई है। “As you sow, so shall you reap” जैसा बोओ वैसा काटो, कुछ करोगे ही नहीं तो पाओगे कैसे ? लोभ, आसक्ति के त्याग बिना सद्गुण यूं ही प्राप्त नहीं हो जाते, कोई भी वस्तु ऐसे ही नहीं मिल जाती। फिर भगवान क्या मुफ्त में ही माल दे देंगे ? आत्मिक विकास के लिए, सद्गुण प्राप्ति के लिए त्याग और तप अनिवार्य है । मानव अपने जीवन में प्राप्त किया हुआ सब कुछ खर्च कर डालें तो कोई मना नहीं करेगा। परंतु हमारा कल बिगड न जाए, यह देखना है । जीवन के अंत में जहाँ जाना है, उसके लिए कोई तैयारी नहीं । जो मिला है वह केवल भोग के लिए ही नहीं, त्याग के लिए भी है। जिसे परलोक का भय नहीं, सुंदर परिणाम का विचार नहीं, वह धर्म, समाज और स्वयं का नुकसान करता है। विचारक, सत्यवादी, अपरिग्रही होता है । कम परिग्रही व्यक्ति कभी समाज का खून नहीं चूसता, वह समझता है कि आखिर इस देह को तो अग्नि में जलना ही है, अत: इसके पोषण के साथ इससे जितना हो सके, अच्छा काम निकलवा लेता है। जो जाग्रत है, वह आत्मा को मलिन नहीं होने देता । भौतिक जगत में तो कहते हैं, “आ लोक मीठा, तो परलोक कोणे दीठा ।" जितना हो सके भोग लो प्राप्त कर लो, इस तरह हमने देखा कि, भोगी को राग होता है, विचारक को त्याग होता है। काल का विचार सब करते है, और करना भी चाहिए । विद्यार्थी कल का पाठ तैयार करता है। कुमारावस्था में जवानी का और जवानी में बुढापे का विचार व्यक्ति करता है, वैसे ही दीर्घ दृष्टि वाले इन्सान को अगले जन्म का विचार भी अवश्य करना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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