Book Title: Dharma Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Divine Knowledge Society

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Page 170
________________ ४० वृन्दानुगामी जो विशेषज्ञ होता है, वही खट्टे-मीठे यानि कि खोटे खरे का भेद समझने का विवेक रखता है। इसके लिए बुद्धि को कसने की जरूरत हैं, गडरिए प्रवाह में बहने से प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। किसी भी बात को सुनकर उस पर प्रज्ञा से मनन, निदिध्यासन, व्याख्या करो। ऐसी बुद्धिवाला व्यक्ति दुनिया में से विशिष्ट तत्त्वों की खोज कर, अच्छी वस्तु को ग्रहण कर लेगा। कचरे में पड़ी हुई गिन्नी को हम फेंक नहीं देते, वैसे ही खराब में से भी अच्छे को ग्रहण करने की योग्यता उसमें होती है। जब प्रज्ञा, विशेषज्ञता खिलती है, तब अच्छे बुरे का विवेक स्वयं आ जाता है। गलत है तो पुरानी वस्तु, बात का भी त्याग करो, और अच्छा हों तो अर्वाचीन को भी ग्रहण करो, जो अविच्छिन्न है, उसका स्वीकार करो। वृद्धानुगामी बनना यह इसके बाद का सदगुण है, जिन्होंने मार्ग देखा है, और उस पर चले हैं, वोही राह दिखा सकते हैं। उनकी प्रेरणा, अनुभवों से हम काफी कुछ लाभ उठा सकते हैं। जो दुख सुख रूपी गड्डे, खाईयों से गुजरे हों वे ही सच्चे पथ पदर्शक बन सकते हैं। कई लोगों का कहना है कि उन्हें वृद्धों के अनुभव की जरूरत नहीं, स्वयं अनुभव करना चाहते हैं। मगर क्या जहर या अफीम का अनुभव किया जाता है? ऐसा करने से हानि की संभावना है। इसीलिए कहा गया है, । २४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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