Book Title: Dharma Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Divine Knowledge Society

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Page 174
________________ १५१ गलत तथा आँख खुली हों तो यह गलत, दोनों स्वप्न जैसे ही सार हीन है । हमने इस ज्ञान को समझा नहीं, सब वस्तुओं में लिप्त होकर जी रहे हैं, स्वप्न में भी प्रिय वस्तु का वियोग होने पर, हम रोने लगते हैं । ज्ञानदशा से समझें तो जीवन भी एक स्वप्न ही है । जगने पर जैसे स्वप्न असत्य लगता है, वैसे ही आत्मजागृति आने पर संसार भी स्वप्नवत् असार लगने लगता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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