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से जागृत होगा? दूसरों के दोषों को प्रगट करना, समझदार आदमी का काम नहीं, हो सके तो उसे ही करूणाभाव से कहना चाहिए, और यदि अपनी बात न मानें तो समता भाव धारण करना चाहिए। बुराईयां दूर करने के लिए, किसी की सहायता नहीं लेने वाला, शिखर की चोटी पर खड़े वृक्ष की भांति, पवन में स्वयं ही अपना शत्रु है।
"मार्ग भूलेला जीवन पथिक ने, मार्ग चिंधवा ऊभो रहूं, करे उपेक्षा ए मारगनी, तो ये समता चित्त धरूं।"
गुणानुरागी बनने के लिए, यह सद्गुण अत्यंत सूक्ष्म है। एकलव्यने श्री द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाकर, उन्हें गुरूपद पर स्थापित कर, अपना श्रद्धा दीपक जलाकर, भक्तिपूर्वक अभ्यास किया तो श्रेष्ठ विद्या प्राप्त कर सका।
जैसे इत्र को कपड़े पर लगाने से सुगंध फैलती हैं, वैसे ही गुणवान के संसर्ग से अपना चित्त भी सौरभयुक्त हो जाता है।
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