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१३४ की, कि बेटे के छोटे बेटे अर्थात् अपने पोते को लाकर धूप में बिठा दिया। अपने बेटे को धूप में बैठा देखकर, स्वयं में बाप का भाव जाग्रत हुआ, फौरन ही कूद कर नीचे आ गया। बच्चे को छाती से लगाते हुए पूछा, “ऐसा क्यों किया?" पिताने कहा, “मुझे तुम्हारे लिए कैसा प्रेम है, यह तुम इसके बिना कैसे समझते?'' तुमने खाना नहीं खाया तो मुझे कैसा महसूस हो रहा है? यह तुम अपने पुत्र के दृष्टांत से समझ जाओगे।
विचारों के जो अधूरे तंत्र, पिता छोड़कर जाते हैं, उन्हें पूरा करना पुत्र का आनंद है। पुत्र नहीं करेगा तो कौन करेगा? माँ बाप प्रेम की वर्षा जो बालकों पर करते हैं, उसका ऋण तो कभी नहीं चुकाया जा सकता। तुम कहोगे कि भाग्य से मिला, परंतु निमित्त तो वे हैं न। जो माँ बाप धर्म से चलित हुए हो, आध्यात्मिक जीवन में अज्ञान हों और तुम उन्हें सच्चे, सही मार्ग की ओर ले जाओ, उसके लिए उत्तम साधन उपलब्ध कराओ, तो थोडा सा आंशिक उपकार अदा किया, ऐसा कह सकते हैं।
ऐसे पुत्र, स्वजन हों, वे लोग सुपक्ष बाले कहलाते है, ऐसे सुपक्ष के पंख प्राप्त होने पर, अपने स्वधाम पहुंचने में भी आनंद आता है।
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