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इसीलिए हमें सत्कथा का गुण आत्मसात् करना है, दूसरों से जब भी करें, अच्छी ही बात करें, तो उसका असर जरूर होता है, इससे जीवन परिवर्तन हो सकता है। जहाँ संस्कारी लोग होते हैं वहाँ उनकी संताने भी संस्कारी ही होती हैं।
शंकराचार्य दिग्विजय करने निकले हैं, वे कुमार भट्ट को जीतना चाहते हैं। पनिहारियों से वे कुमार भट्ट का घर कहाँ है ? पूछते हैं। पनिहारियां जवाब देती हैं कि, जिसके घर के बाहर बैठे हुए तोता-मैना तत्त्वज्ञान की चर्चा कर रहे हों, वही कुमार भट्ट का घर हैं।
जिस घर के वातावरण में तोता-मैना शास्त्र ज्ञान की चर्चा करते हों, वहाँ के मानव कैसे होंगे? ऐसे वातावरण का प्रभाव केवल घर के लोगों पर ही नहीं, बल्कि नौकरों तथा पशु-पक्षियों पर भी पड़ता है।
एक गाँव में एक औरत ने अट्ठम (तेला) किया, तो उसके यहाँ रहने वाली गाय की बछडीने भी अट्ठम किया, उसकी मालकिन नहीं खाए, तो वह कैसे खाए ? वैसे भी वो मालकिन के खाने के बाद ही खाती थी। फिर दोनो ने पारणा साथ-साथ किया, वातावरण का कैसा असर!
पशुओं पर वातावरण के असर का एक दूसरा प्रसंग देखते हैं, “हिज मास्टर्स वॉईस'' H.M.V. के ग्रामोफोन पर कुत्ते का चित्र है। उसका मालिक जब वाद्य बजाने बैठता, वह सामने बैठ जाता। शेठ जब खाना खाते वह भी टेबल के पास बैठकर खाना खाता, वह शेठ से इतना घुलामिला था कि मानो उसका समझदार मित्र हो।
कुछ समय बाद शेठ की मृत्यु हो गई, अब कुत्ते को संगीत सुनाई नहीं देता, न ही मालिक दिखाई देते। उसने खाना पीना छोड़ दिया, उदास होकर पड़ा रहता, घर के लोगों ने बहुत उपाय किए, उसने खाना नहीं लिया। फिर एक जन को विचार आया कि शेठ का रिकॉर्ड चालू किया जाए, ऐसा किया। शेठ की आवाज सुनते ही कुत्ता हर्षित होकर नाचने लगा, आनंद के आंसू बहाने लगा। फिर तो वह रोज रिकॉर्ड सुनता तभी खाना खाता,
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