Book Title: Dharma Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Divine Knowledge Society

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Page 154
________________ __१३१ “हीन तणो जे संग न त्यजे, तेहनो गुण नवि रहे, जेम जलधिजलमां भल्यु गंगा, नीर लूणपणुं लहे।" धर्मशील का जीवन सुपक्षवाला होना चाहिए। बुरे और खोटे कर्मों के प्रति सावधान रहते हुए, “ऐसा करना मुझे शोभा नहीं देता।" यह विचार वह सदा करता ही रहता है। सुपक्ष में अनुकूलता, धर्मशीलता और साथ में सदाचार ये तीन गुण रहते हैं। सुपक्ष का दूसरा अर्थ है अच्छे पंखवाला, पंख अच्छे हो तो गगन में अनंत तक उडा जा सकता है। यदि आत्मा रूपी पक्षी को मुक्ति रूपी गगन की अनन्त ऊँचाईयों तक उड़ान भरनी है तो उसके पंखो का सुन्दर और सुदृढ होना आवश्यक है। यह पंख धर्म से युक्त होने पर ही उड़ान में समर्थ एवं सहायक हो सकते हैं। सदाचार से पूर्ण मानव रूपी पक्षी ही मोक्ष की और प्रयाण कर सकता है, मोक्ष प्राप्त कर सकता है। संयोग और स्वजन अनुकूल हों, मन धर्मशील हो, और सब सदाचार से पूर्ण हो तो संसाररूपी घौसला सुन्दर बन सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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