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सुपक्ष
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सत्कथा से इन्सान सुपक्षवान बनता है। पक्ष के दो अर्थ हैं, पक्ष यानि तरफ या करवट तथा पक्ष यानि पंख। धर्मी व्यक्ति यानि सज्जन, स्नेही, इनका पक्ष अच्छा होता है, सत्कथा करने वालों का पक्ष अच्छा ही होता है न। जैसे शराबी का पक्ष शराबी, इसका कौन विश्वास करे? हल्के का पक्ष हल्का। दस शराबी मित्र साथ में शराब पीते हैं, परंतु उनमें से एक मित्र कोई बात कहे तो यही कहेगा कि शराबी का विश्वास कौन करेगा?
कुपक्ष वाला मित्र समय आने पर काम नहीं आएगा, सुपक्ष वाला मित्र तुम्हारी बात सुनेगा, मुसीबत समझेगा, तुम्हारे प्रति अनुराग जगेगा, और सहायता करने तो तैयार होगा। दुर्गुणी तो केवल नुकसान करने में ही साथ देंगे, खराब आदमी का विश्वास आदमी भी नहीं करेगा। सद्गुणि के सभी प्रशंसक बनेंगे, यहाँ तक कि शत्रु भी मन में तो प्रशंसा ही करता है, सद्गुण का यह महत्त्व हैं।
सुपक्षवाला, अनुकूल स्वजन प्राप्त करता है, क्यों कि धर्मी के लिए सबके मन में सम्मान रहता है, उसका साथ देने को सब तैयार रहते हैं। ऐसे निर्व्यसनी व्यक्ति को सभी अनुकूलताएं प्राप्त होती हैं। उसका तप भी सामने वाले के मन में भाव जगाता है, प्रतिकुलताएं अनुकूलताएं बन जाती हैं, जीवन का समग्र वातावरण अनुकूल बन जाता है।
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