________________
१२०
शब्द की मार असर जोरदार होती है, क्रोध भरे एक शब्द से ही हमारी आँखे लाल हो जाती हैं, प्रेमभरे एक शब्द से मुँह पर मुस्कान आ जाती है, जैसे सुंदर वाद्य के तार को स्पर्श करने से सुर झंकृत हो जाते हैं, वैसे ही शब्द के स्पर्श से ज्ञानतंतु भी सक्रीय हो जाते हैं।
हथौड़े से कुछ ठोकना हों तो हाथ पर से घड़ी खोल देते हैं, यह सोचकर कि कहीं बिगड़ न जाए। लेकिन हम अपने अमूल्य दिमाग को संतुलित रखने के लिए ध्यान नहीं देते। __हमें अपने दिमाग, मन को श्वेत वस्त्र जैसा रखना चाहिए, ताकि दाग पडते ही फौरन ख्याल आ जाए, और दाग लग भी जाए किसी दुर्विचार से, तो जल्दी ही धो डालना चाहिए, ताकि छाप न छोडे। मनरूपी स्लेट पर व्यर्थ की कोई बात अंकित न हों जाएं उसके लिए जागृति रखनी चाहिए।
हमेशां अपने से ऊंचे लोगों के साथ ही संगत करनी चाहिए, ताकि हम कुछ अच्छा सीख सकें। बुरी संगत से, व्यसनी की संगत से हमारे में भी व्यसन प्रवेश कर जाएंगे, और निर्व्यसनी की संगत से व्यसन मुक्ति भी हो सकती है। लहसुन दुर्गंध देती है, चंदन सुगंध देता है, ठीक वैसे ही संग का रंग भी लगता है।
हमें यदि कुछ अच्छा मिला है जीवन में, तो दूसरों को भी सिखाएँ ऐसी भावना होनी चाहिए। गटर का पानी भी गंगाजल के साथ मिलकर गंगाजल बन जाता है। ___ कुछ लोग कहते हैं कि, “शत्रु के गुण गाओ, और गुरु के दोष भी हों तो प्रगट करो।" परंतु यह ठीक नहीं है। निर्गुणी गुरु की उपेक्षा करनी चाहिए, अपने दोष गाने से, उसकी बुराईयां दूर नहीं हो जाती, सतत निंदा से ज्ञान तथा चारित्र्य मलिन होते हैं। हमारा कार्य तो यह है कि गुण सबके लो, दोष किसी के भी मत लो।
हमारा सत्य भी हितकारी, मितकारी होना चाहिए। जो व्यक्ति अपने बुजुर्गों की निन्दा करता है, उसके हृदय में गुरू के प्रति सन्मान भाव कहाँ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org